अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने हाल ही में वैश्विक स्तर पर अपनी उपस्थिति को और भी अधिक मज़बूत किया है। यूक्रेन युद्ध, गाज़ा पट्टी में चल रहे संघर्ष, और अफ्रीकी देशों में मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं के संदर्भ में ICC के सक्रिय कदमों ने इसे फिर से चर्चा में ला दिया है। 2025 की शुरुआत में कई मामलों में गिरफ्तार वारंट जारी होने के बाद, ICC की प्रासंगिकता और न्याय प्रक्रिया की पारदर्शिता पर अंतरराष्ट्रीय बहस तेज हो गई है। हाल ही में कोर्ट ने कुछ हाई-प्रोफाइल नेताओं पर युद्ध अपराधों का आरोप लगाते हुए अपनी साख और कानूनी ताकत का प्रदर्शन किया।
नए डिजिटल प्रमाणों (जैसे ड्रोन फुटेज, उपग्रह चित्र और सोशल मीडिया रिकॉर्ड्स) को केस में शामिल करने से ICC की कार्यप्रणाली पहले से कहीं अधिक तकनीकी रूप से सशक्त हो गई है। यह बदलाव न केवल इसकी निष्पक्षता को बढ़ाता है, बल्कि पीड़ित समुदायों को भी उम्मीद की नई किरण देता है। आने वाले वर्षों में, ICC का दायरा और भी बढ़ेगा, विशेष रूप से जलवायु अपराधों और साइबर युद्ध जैसे नए अंतरराष्ट्रीय अपराधों की जांच में।
ICC क्या है और इसकी स्थापना क्यों हुई?
अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) की स्थापना 1 जुलाई 2002 को “रोम संविधि” के अंतर्गत हुई थी, जिसे 123 देशों ने स्वीकृति दी है। इसका मुख्यालय नीदरलैंड्स के हेग शहर में स्थित है। ICC की स्थापना का मुख्य उद्देश्य है — उन व्यक्तियों पर मुकदमा चलाना जो मानवता के विरुद्ध अपराध, युद्ध अपराध, नरसंहार और आक्रामकता जैसे अंतरराष्ट्रीय अपराधों में शामिल होते हैं। यह अदालत राष्ट्रों की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं करती, बल्कि उन मामलों में हस्तक्षेप करती है जब राष्ट्रीय न्याय प्रणालियाँ निष्पक्ष न्याय देने में असफल हो जाती हैं।
ICC उन अपराधों पर ध्यान केंद्रित करती है जो बड़े पैमाने पर मानवता को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, रुआंडा का नरसंहार, यूगोस्लाविया युद्ध, और हाल के वर्षों में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार इसके कार्यक्षेत्र में आते हैं।
ICC के प्रमुख कार्य और अधिकार-क्षेत्र
ICC चार मुख्य प्रकार के अपराधों की जांच करता है — नरसंहार (Genocide), मानवता के विरुद्ध अपराध (Crimes Against Humanity), युद्ध अपराध (War Crimes), और आक्रामकता (Crime of Aggression)। इसकी शक्ति व्यक्तिगत अपराधियों तक सीमित है, न कि किसी राष्ट्र या संगठन पर। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितनी भी शक्ति या पद पर क्यों न हो, न्याय से बच न सके।
ICC का एक महत्वपूर्ण कार्य यह भी है कि यह पीड़ितों की भागीदारी को बढ़ावा देता है। यह कोर्ट न केवल अपराधियों को सजा देती है, बल्कि पीड़ितों के लिए मुआवज़ा भी सुनिश्चित करती है। यह प्रक्रिया न्याय की मानव-केंद्रित दृष्टिकोण को दर्शाती है।
हालिया चर्चित केस और ICC की भूमिका
2023 और 2024 में ICC ने कई ऐसे केस संभाले जो अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियाँ बने। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस के उच्चस्तरीय नेताओं पर गिरफ्तारी वारंट जारी करना एक ऐतिहासिक कदम था। इसके अलावा फिलिस्तीन और इज़राइल के बीच संघर्ष में मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच भी ICC की सक्रियता को दर्शाता है।
ICC ने हाल ही में अफ्रीका के कुछ देशों में हो रहे बाल सैनिकों की भर्ती और यौन हिंसा के मामलों में तेजी से जांच शुरू की है। इससे स्पष्ट होता है कि कोर्ट केवल कागज़ी कार्यवाही तक सीमित नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर कार्रवाई कर रही है।
ICC और संयुक्त राष्ट्र के बीच संबंध
ICC और संयुक्त राष्ट्र (UN) के बीच संबंधों की नींव ‘रोम संविधि’ द्वारा रखी गई है। ICC एक स्वतंत्र संस्था है लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के माध्यम से इसे कुछ मामलों में अधिकार मिल सकते हैं। जैसे डारफर और लीबिया मामलों में UNSC ने ICC को जांच सौंपने की सिफारिश की थी।
हालांकि यह रिश्ता सहयोगात्मक है, लेकिन कई बार राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से ICC को आलोचना का सामना भी करना पड़ता है। फिर भी, संयुक्त राष्ट्र के साथ इसका यह संबंध इसे वैश्विक स्तर पर एक मजबूत न्यायिक संस्थान बनाता है।
ICC के समक्ष चुनौतियाँ और आलोचना
हालांकि ICC की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, फिर भी इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सबसे बड़ी समस्या है — “राजनीतिक पक्षपात” का आरोप। अमेरिका, चीन और रूस जैसे शक्तिशाली देशों ने अभी तक ICC की सदस्यता नहीं ली है, जिससे इसकी सार्वभौमिकता पर सवाल उठते हैं।
इसके अलावा कई मामलों में साक्ष्य की कमी, स्थानीय सहयोग की अनिच्छा, और सुरक्षा की चुनौतियाँ इसकी कार्यवाही को धीमा कर देती हैं। कुछ अफ्रीकी देशों ने ICC पर अफ्रीका-केंद्रित होने का आरोप लगाते हुए इससे अलग होने की धमकी भी दी है।
भविष्य में ICC की दिशा और विकास
2025 और उसके आगे ICC का दायरा और अधिक विस्तृत होने जा रहा है। जलवायु अपराध, डिजिटल युद्ध, और बायोICC की भूमिकालॉजिकल हथियारों के प्रयोग जैसे नए अपराध अब इसकी रडार पर हैं। कोर्ट तकनीक का भरपूर उपयोग कर रही है जैसे डिजिटल फोरेंसिक, AI आधारित साक्ष्य विश्लेषण, और गवाहों की सुरक्षा के लिए वर्चुअल उपस्थिति।
इसका भविष्य उन देशों और नागरिकों पर निर्भर करेगा जो न्याय, जवाबदेही और मानवीय गरिमा को सर्वोच्च मानते हैं। अगर वैश्विक सहयोग बना रहा, तो ICC एक सशक्त न्यायिक संस्था के रूप में और भी प्रभावशाली बन सकती है
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